Anand Thu, 18/03/2021 - 13:10 pm गीता-दर्शन भाग दो कृष्ण कहते हैं: 'जब मनुष्य आसक्तिरहित होकर कर्म करता है, तो उसका जीवन यज्ञ हो जाता है'--पवित्र। उससे, मैं का जो पागलपन है, वह विदा हो जाता है। मेरे का विस्तार गिर जाता है। आसिक्त का जाल टूट जाता है। तादात्म्य का भाव खो जाता है। फिर वह व्यक्ति जैसा भी जीए, वह व्यक्ति जैसा भी चले, फिर वह व्यक्ति जो भी करे, उस करने, उस जीने, उस होने से कोई बंधन निर्मित नहीं होते हैं।"—ओशोइस पुस्तक में गीता के चौथे व पांचवें अध्याय—ज्ञान-कर्म-संन्यास-योग व कर्म-संन्यास-योग—तथा विविध प्रश्नों व विषयों पर चर्चा है। कुछ विषय-बिंदु: निष्काम कर्म का विज्ञान जन्मों-जन्मों में कैसे निर्मित होता है मन आत्म-ज्ञान के लिए सूत्र काम-क्रोध से मुक्ति सामग्री तालिका अध्याय शीर्षक अनुक्रम #1: सत्य एक जानने वाले अनेक #2: भागवत चेतना का करुणावश अवतरण #3: दिव्य जीवन, समर्पित जीवन #4: परमात्मा के स्वर #5: जीवन एक लीला #6: वर्ण-व्यवस्था का मनोविज्ञान अधिक जानकारी Publisher Divyansh Publication ISBN-13 978-93-84657-56-7 Log in to post comments18 views