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कृष्‍ण-स्‍मृति

कृष्‍ण-स्‍मृति 

कृष्ण के बहुआयामी व्यक्तित्व पर प्रश्नोत्तर सहित मुंबई एवं मनाली में ओशो द्वारा दी गई 21 वार्ताओं एवं नव-संन्यास पर दिए गए एक विशेष प्रवचन का अप्रतिम संकलन। यही वह प्रवचनमाला है जिसके दौरान ओशो के साक्षित्व में संन्यास ने नये शिखरों को छूने के लिए उत्प्रेरणा ली और ‘नव-संन्यास अंतर्राष्ट्रीय’ की संन्यास-दीक्षा का सूत्रपात हुआ।
"कृष्ण का व्यक्तित्व बहुत अनूठा है।
अनूठेपन की पहली बात तो यह है कि कृष्ण हुए तो अतीत में हैं, लेकिन हैं भविष्य के।
मनुष्य अभी भी इस योग्य नहीं हो पाया कि कृष्ण का समसामयिक बन सके।
अभी भी कृष्ण मनुष्य की समझ के बाहर हैं।
भविष्य में ही यह संभव हो पाएगा कि कृष्ण को हम समझ पाएं।"—ओशो

  • पुस्तक के कुछ विषय-बिंदु:
  • कृष्णा का व्यक्तित्व और उसका महत्व : आज के संदर्भ में
  • आध्यात्मिक संभोग का अर्थ
  • जीवन में महोत्सव के प्रतीक कृष्णा
  • स्वस्थ राजनीति के प्रतीकपुरुष कृष्णा
  • सात शरीरो की साधना

सामग्री तालिका

अध्याय शीर्षक

    अनुक्रम

    #1: प्रवचन 1 : हंसते व जीवंत धर्म ‍के प्रतीक कृष्ण

    #2: प्रवचन 2 : इहलौकिक जीवन के समग्र स्वीकार के प्रतीक कृष्ण

    #3: प्रवचन 3 : अनुपार्जित सहज शून्यता के प्रतीक कृष्ण

    #4: प्रवचन 4 : स्वधर्म-निष्ठा ‍के आत्यंतिक प्रतीक कृष्ण

    #5: प्रवचन 5 : ‘अकारण’ के आत्यंतिक प्रतीक कृष्ण

    #6: प्रवचन 6 : जीवन के बृहद् जोड़ के प्रतीक कृष्ण

    #7: प्रवचन 7 : जीवन में महोत्सव के प्रतीक कृष्ण

    #8: प्रवचन 8 : क्षण-क्षण जीने के महाप्रतीक कृष्ण

    #9: प्रवचन 9 : विराट जागतिक रासलीला के प्रतीक कृष्ण

    #10: प्रवचन 10 : स्वस्थ राजनीति के प्रतीकपुरुष कृष्ण

    #11: प्रवचन 11 : मानवीय पहलूयु‍क्त भगवत्ता ‍के प्रतीक कृष्ण

    #12: प्रवचन 12 : साधनारहित सिद्धि के परमप्रतीक कृष्ण

    #13: Lप्रवचन 13 : अचिंत्य-धारा ‍के प्रतीकबिंदु कृष्ण

    #14: प्रवचन 14 : अकर्म के पूर्ण प्रतीक कृष्ण

    #15: प्रवचन 15 : अनंत सागररूप चेतना ‍के प्रतीक कृष्ण

    #16: प्रवचन 16 : सीखने की सहजता के प्रतीक कृष्ण

    #17: प्रवचन 17 : स्वभाव की पूर्ण खिलावट के प्रतीक कृष्ण

    #18: प्रवचन 18 : अभिनयपूर्ण जीवन के प्रतीक कृष्ण

    #19: प्रवचन 19 : फलाकांक्षामुक्त कर्म के प्रतीक कृष्ण

    #20: प्रवचन 20 : राजपथरूप भव्य जीवनधारा के प्रतीक कृष्ण

    #21: प्रवचन 21 : वंशीरूप जीवन के प्रतीक कृष्ण

    अनुक्रम

    #1: प्रवचन 1 : हंसते व जीवंत धर्म ‍के प्रतीक कृष्ण

    #2: प्रवचन 2 : इहलौकिक जीवन के समग्र स्वीकार के प्रतीक कृष्ण

    #3: प्रवचन 3 : अनुपार्जित सहज शून्यता के प्रतीक कृष्ण

    #4: प्रवचन 4 : स्वधर्म-निष्ठा ‍के आत्यंतिक प्रतीक कृष्ण

    #5: प्रवचन 5 : ‘अकारण’ के आत्यंतिक प्रतीक कृष्ण

    #6: प्रवचन 6 : जीवन के बृहद् जोड़ के प्रतीक कृष्ण

    #7: प्रवचन 7 : जीवन में महोत्सव के प्रतीक कृष्ण

    #8: प्रवचन 8 : क्षण-क्षण जीने के महाप्रतीक कृष्ण

    #9: प्रवचन 9 : विराट जागतिक रासलीला के प्रतीक कृष्ण

    #10: प्रवचन 10 : स्वस्थ राजनीति के प्रतीकपुरुष कृष्ण

    #11: प्रवचन 11 : मानवीय पहलूयु‍क्त भगवत्ता ‍के प्रतीक कृष्ण

    #12: प्रवचन 12 : साधनारहित सिद्धि के परमप्रतीक कृष्ण

    #13: Lप्रवचन 13 : अचिंत्य-धारा ‍के प्रतीकबिंदु कृष्ण

    #14: प्रवचन 14 : अकर्म के पूर्ण प्रतीक कृष्ण

    #15: प्रवचन 15 : अनंत सागररूप चेतना ‍के प्रतीक कृष्ण

    #16: प्रवचन 16 : सीखने की सहजता के प्रतीक कृष्ण

    #17: प्रवचन 17 : स्वभाव की पूर्ण खिलावट के प्रतीक कृष्ण

    #18: प्रवचन 18 : अभिनयपूर्ण जीवन के प्रतीक कृष्ण

    #19: प्रवचन 19 : फलाकांक्षामुक्त कर्म के प्रतीक कृष्ण

    #20: प्रवचन 20 : राजपथरूप भव्य जीवनधारा के प्रतीक कृष्ण

    #21: प्रवचन 21 : वंशीरूप जीवन के प्रतीक कृष्ण

    अनुक्रम

    #1: प्रवचन 1 : हंसते व जीवंत धर्म ‍के प्रतीक कृष्ण

    #2: प्रवचन 2 : इहलौकिक जीवन के समग्र स्वीकार के प्रतीक कृष्ण

    #3: प्रवचन 3 : अनुपार्जित सहज शून्यता के प्रतीक कृष्ण

    #4: प्रवचन 4 : स्वधर्म-निष्ठा ‍के आत्यंतिक प्रतीक कृष्ण

    #5: प्रवचन 5 : ‘अकारण’ के आत्यंतिक प्रतीक कृष्ण

    #6: प्रवचन 6 : जीवन के बृहद् जोड़ के प्रतीक कृष्ण

    #7: प्रवचन 7 : जीवन में महोत्सव के प्रतीक कृष्ण

    #8: प्रवचन 8 : क्षण-क्षण जीने के महाप्रतीक कृष्ण

    #9: प्रवचन 9 : विराट जागतिक रासलीला के प्रतीक कृष्ण

    #10: प्रवचन 10 : स्वस्थ राजनीति के प्रतीकपुरुष कृष्ण

    #11: प्रवचन 11 : मानवीय पहलूयु‍क्त भगवत्ता ‍के प्रतीक कृष्ण

    #12: प्रवचन 12 : साधनारहित सिद्धि के परमप्रतीक कृष्ण

    #13: Lप्रवचन 13 : अचिंत्य-धारा ‍के प्रतीकबिंदु कृष्ण

    #14: प्रवचन 14 : अकर्म के पूर्ण प्रतीक कृष्ण

    #15: प्रवचन 15 : अनंत सागररूप चेतना ‍के प्रतीक कृष्ण

    #16: प्रवचन 16 : सीखने की सहजता के प्रतीक कृष्ण

    #17: प्रवचन 17 : स्वभाव की पूर्ण खिलावट के प्रतीक कृष्ण

    #18: प्रवचन 18 : अभिनयपूर्ण जीवन के प्रतीक कृष्ण

    #19: प्रवचन 19 : फलाकांक्षामुक्त कर्म के प्रतीक कृष्ण

    #20: प्रवचन 20 : राजपथरूप भव्य जीवनधारा के प्रतीक कृष्ण

    #21: प्रवचन 21 : वंशीरूप जीवन के प्रतीक कृष्ण

विवरण

ओशो द्वारा कृष्‍ण के बहु-आयामी व्‍य‍क्‍तित्व पर दी गई २१ वार्ताओं एवं नव-संन्‍यास पर दिए गए एक विशेष प्रवचन का अप्रतिम संकलन।


उद्धरण : कृष्‍ण-स्‍मृति - दूसरा प्रवचन - इहलौकिक जीवन के समग्र स्वीकार के प्रतीक कृष्ण


"जीवन की यह जो संभावना है--जीवन की यह जो भविष्य की संभावना है, इस भविष्य की संभावनाओं को खयाल में रख कर कृष्ण पर बात करने का मैंने विचार किया है। हमें भी समझना मुश्किल पड़ेगा, क्योंकि हम भी अतीत के दुख के संस्कारों से ही भरे हुए हैं। और धर्म को हम भी आंसुओं से जोड़ते हैं, बांसुरियों से नहीं। शायद ही हमने कभी कोई ऐसा आदमी देखा हो जो कि इसलिए संन्यासी हो गया हो कि जीवन में बहुत आनंद है। हां, किसी की पत्नी मर गई है और जीवन दुख हो गया है और वह संन्यासी हो गया। किसी का धन खो गया है, दिवालिया हो गया है, आंखें आंसुओं से भर गई हैं और वह संन्यासी हो गया। कोई उदास है, दुखी है, पीड़ित है, और संन्यासी हो गया है। दुख से संन्यास निकला है। लेकिन आनंद से? आनंद से संन्यास नहीं निकला। कृष्ण भी मेरे लिए एक ही व्यक्ति हैं जो आनंद से संन्यासी हैं।

निश्र्चित ही आनंद से जो संन्यासी है वह दुख वाले संन्यासी से आमूल रूप से भिन्न होगा। जैसे मैं कह रहा हूं कि भविष्य का धर्म आनंद का होगा, वैसे ही मैं यह भी कहता हूं कि भविष्य का संन्यासी आनंद से संन्यासी होगा। इसलिए नहीं कि एक परिवार दुख दे रहा था इसलिए एक व्यक्ति छोड़ कर संन्यासी हो गया, बल्कि एक परिवार उसके आनंद के लिए बहुत छोटा पड़ता था, पूरी पृथ्वी को परिवार बनाने के लिए संन्यासी हो गया। इसलिए नहीं कि एक प्रेम जीवन में बंधन बन गया था, इसलिए कोई प्रेम को छोड़ कर संन्यासी हो गया, बल्कि इसलिए कि एक प्रेम इतने आनंद के लिए बहुत छोटा था, सारी पृथ्वी का प्रेम जरूरी था, इसलिए कोई संन्यासी हो गया। जीवन की स्वीकृति और जीवन के आनंद और जीवन के रस से निकले हुए संन्यास को जो समझ पाएगा, वह कृष्ण को भी समझ पा सकता है।"—ओशो

 

अधिक जानकारी
Publisher OSHO Media International
ISBN-13 978-81-7261-023-4
Number of Pages 516
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