एस धम्मो सनंतनो—भाग पांच
एस धम्मो सनंतनो
धम्मपद: बुद्ध-वाणी
ऊर्जा का क्षण-क्षण उपयोग: धर्म
जो बुद्ध के पास था, ठीक उतना ही लेकर तुम भी पैदा हुए हो। तुम्हारी वीणा में और बुद्ध की वीणा में रत्ती भर का फासला नहीं है। भला तुम्हारे तार ढीले हों, थोड़े कसने पड़ें। या तुम्हारे तार थोड़े ज्यादा कसे हों, थोड़े ढीले करने पड़ें। या तुम्हारे तार वीणा से अलग पड़े हों और उन्हें वीणा पर बिठाना पड़े। लेकिन तुम्हारे पास ठीक उतना ही सामान है, उतना ही साज है, जितना बुद्ध के पास। अगर बुद्ध के जीवन में संगीत पैदा हो सका, तुम्हारे जीवन में भी हो सकेगा। ओशो
अध्याय शीर्षक
#42: झुकने से उपलब्धि, झुकने में उपलब्धि
#43: परमात्मा अपनी ओर आने का ही ढंग
#44: ऊर्जा का क्षण-क्षण उपयोग: धर्म
#45: सुख या दुख तुम्हारा ही निर्णय
#46: जीवन-मृत्यु से पार है अमृत
#47: अकेलेपन की गहन प्रतीति है मुक्ति
#48: आज बनकर जी!
भगवान बुद्ध की सुललित वाणी धम्मपद पर प्रश्नोत्तर सहित पुणे में हुई सीरीज के अंतर्गत दी गईं 122 OSHO Talks में से 10 (42 से 51) OSHO Talks का संग्रह
उद्धरण: एस धम्मो सनंतनो—भाग पांचअकेलेपन की गहन प्रतीति है मुक्ति
बुद्ध के दृष्टिकोण में जो अत्यंत आधारभूत बात है, वह यह है--धर्म, ईश्वर से शून्य। अगर तुम किसी भांति ईश्वर को पकड़े रहे, तो बुद्ध के धर्म को समझ न पाओगे। ईश्वर के बहाने तुमने किसी दूसरे पर दायित्व छोड़ा है।
तुम कहते हो, दुख तो हम भोग चुके बहुत, अब हमें नरक न भेजा जाए--जैसे तुम्हें कोई भेजने वाला है! कि प्रार्थना और पूजा हमने इतनी की, अब हमें स्वर्ग भेजा जाए--जैसे कि कोई पुरस्कार बांट रहा है। वहां कोई भी नहीं है।
बुद्ध कहते हैं, तुम अकेले हो। और तुम्हें इस अपने अकेलेपन को इसकी समग्रता में स्वीकार कर लेना है। इस अकेलेपन की गहरी प्रतीति से ही मुक्ति होगी। क्योंकि जब तक दूसरा है और दूसरे पर टालने की सुविधा है, तब तक तुम बंधे ही रहोगे। कभी संसार तुम्हें बांधेगा और कभी धर्म तुम्हें बांध लेगा। लेकिन बांधने का सूत्र है कि कोई दूसरे पर तुम जिम्मेवारी टालते हो। भगवान है। वही करवा रहा है तो तुम कर रहे हो। वही जहां भेजेगा, वहीं तुम जाओगे। वह सुख देगा तो सुख, दुख देगा तो दुख। तुम अपने ऊपर दायित्व नहीं लेना चाहते। तुम उस जिम्मेदारी से घबड़ाते हो, जो स्वतंत्रता लाती है।
बुद्ध मनुष्य को अंतिम महिमा मानते हैं। उसके ऊपर कोई महिमा नहीं है। और मनुष्य की स्वतंत्रता ही उसके परमात्मा होने का उपाय है। इसे ऐसा समझो, बहुत विरोधाभासी लगेगा, बुद्ध यह कह रहे हैं कि अगर परमात्मा को माना तो कभी परमात्मा न हो सकोगे। तुम्हारी मान्यता ही बाधा बन जाएगी।
हटाओ दूसरे को। अकेले होने को राजी हो जाओ। अगर दुख है, तो जानो कि तुम्हीं कारण हो। कोई और कारण नहीं। अगर सुख चाहते हो, तो प्रार्थना से न मिलेगा, पूजा से न मिलेगा, सृजन करना होगा। फसल काटनी है, बीज बोने होंगे। स्वादिष्ट आमों की अपेक्षा है, तो आम के बीज बोने होंगे। तुम नीम के बीज बोए चले जाओ और आम पाने की आकांक्षा किए जाओ और बीच में परमात्मा का बहाना बनाए रखो, यह न चलेगा।
तो पहली तो बात यह समझ लो कि कोई है नहीं जो तुम्हें भेजता है। शायद यह किसी की धारणा के कारण ही तुम अब तक सम्हल न पाए और तुमने अपने पैरों पर ध्यान न दिया और न अपनी दिशा का चिंतन किया, न अपने को जगाया। तुम गाफिल से रहे, मूर्च्छित से चले। तुमने सदा यह सोचा कि जो करवा रहा है, हो रहा है। और प्रार्थना कर लेंगे, समझा लेंगे, बुझा लेंगे, रो लेंगे, मना लेंगे, परमात्मा करुणावान है। यह करुणा की धारणा भी तुम्हारी धारणा है। परमात्मा महा-उद्धारक है, यह भी तुम्हारी धारणा है। तुमने पाप किया है, वह पतित पावन है, ऐसे तुम किसको धोखा दे रहे हो? ऐसे तुम अपने ही कल्पनाओं के जाल बुनते चले जाते हो। फिर उन्हीं में तुम उलझते चले जाते हो।
बुद्ध कहते हैं, कल्पना के जालों को तोड़ो। तुम अकेले हो। तुम्हारे संसार में, तुम्हारे मनोजगत में तुम्हारे अतिरिक्त और कोई भी नहीं। संसार में भी तुम दूसरे को खोजते हो और धर्म में भी दूसरे को खोजते हो। संसार में खोजते हो पत्नी को, पति को, बेटे को, भाई को, बहन को--कोई दूसरा। अकेले होने की वहां भी तुम्हारी तैयारी नहीं है। अकेले होने में डर लगता है। अकेले घर में छूट जाते हो, भय पकड़ लेता है, कंपने लगते हो। कोई चाहिए।
अगर बिलकुल अकेले छोड़ दिए जाओ और कोई न तुम खोज सको, तो तुम कल्पना करने लगते हो। एकांत में बैठकर भी तुम दूसरे का ही सपना देखते हो। तुम्हें गुहा में, गुफा में बंद कर दिया जाए तो भी तुम बैठकर भीड़ को मौजूद कर लोगे। पत्नी से बातें करोगे, पति से बातें करोगे, मित्रों से बातें करोगे, झगड़े करोगे। अकेले तुम रह नहीं सकते।
किसी तरह संसार से घबड़ा जाते हो एक दिन, तो फिर तुम दूसरा संसार बना लेते हो, जिसको तुम धर्म कहते। फिर तुम मंदिर चले जाते हो, तुम पत्थर की मूर्ति से बातें करते हो। हद्द का धोखा है!
ओशो
इस पुस्तक में ओशो निम्नलिखित विषयों पर बोले हैं:
ध्यान, प्रेम, सहानुभूति, संकल्प, समर्पण, जीवन, क्रांति, मनोविज्ञान, मृत्यु, उत्सव
Publisher | OSHO Media International |
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ISBN-13 | 978-81-7261-381-5 |
Dimensions (size) | 140 x 216 mm |
Number of Pages | 272 |
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